नगर निगम से लीज पर मिले मोदी हाउस को 28 साल में तीन को बेचा

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नगर निगम से लीज पर मिले मोदी हाउस को 28 साल में तीन को बेचा

ग्वालियर। पूर्व महापौर चिम्मन भाई मोदी के परिजन भी निगम की संपत्ति लूट करने वालों की जमात में शामिल हो गए है। यही कारण है कि निगम स्वामित्व वाले मोदी हाउस की लीज भूमि के अनुबंध की धज्जियां उड़ाते बीते 28 साल में एक बार नहीं, बल्कि तीन बार बेचने का अपराध किया जा चुका है। अहम बात यह है कि नियमानुसार निगम से मिली लीज भूमि पर अधिपत्य रखने वालों को केवल किराए पर देने का अधिकार था। राजस्व ग्राम महलगांव सर्वे क्रमांक 471 की लगभग 46125 वर्ग फुट निगम स्वामित्व वाली भूमि वर्ष 1949 में 99 वर्ष की लीज पर सांवलदास मोदी पुत्र देवचंद्र को आवंटित की गई थी, लेकिन सावलदास की मृत्यु पश्चात उक्त लीज भूमि पर वर्ष 1984 में निगम द्वारार बिना अनुबंध संपादित किए तत्कालीन आयुक्त के आदेश के द्वारा पुत्र चिमन भाई मोदी जयंतीभाई मोदी और मोहन भाई मोदी के नाम नामांतरित किया गया। वहीं मोहन मोदी की मृत्यु के पश्चात उनकी अधिपत्य भूमि पर उनकी पत्नी नीलम मोदी, पुत्र अमर मोदी तथा अशोक मोदी काबिज हुए, किंतु उनके द्वारा नगर निगम में नाम परिवर्तन हेतु कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया, हालांकि विवादों में घिरे मोदी हाउस की जमीन को लेकर सावलदास पुत्र देवचंद्र मोदी द्वारा निगम से भूमि की लीज लेने के दौरान किए गए अनुबंध 2 अगस्त 1952 के बिन्दु चार के अनुसार लीजग्रहिता को लीज भूमि को अंदर म्याद किराए पर अथवा लीज पर दिए जाने के अधिकार मिले हैं, अनुबंध में लीज भूमि विक्रय किए जाने अथवा अन्य किसी भी प्रकार से लीज भूमि स्थानांतरण का अधिकार नहीं होने का साफ -साफ उल्लेख किया गया है।

1992 में दो हिस्सों में बेची थी 3919 फुट 
मोदी हाउस की जमीन को अपने स्वामित्व की मानकर लीज पाने वाले सांवलदास मोदी के परिजनों ने वर्ष 1992 में जयंती भाई मोदी की हिस्सेदारी वाली भूमि में से 2133 वर्ग फुट भूमि निर्माण सहित रीना शिवहरे व 1786 वर्ग फुट भूमि निर्माण सहित राज शिवहरे को पंजीकृत विक्रय पत्र द्वारा विक्रय की गई थी और निगम ने इन दोनों भूमियों का पहले नामातंरण किया था, लेकिन विवाद उठने पर दोनों का नामातंरण निरस्त कर दिया था। 

नरेश अग्रवाल को भी की लीज स्थानांतरित
निगम की जमीन से धन बटोरने की चाह में वर्ष 2011 में जयंती भाई मोदी द्वारा अपने अधिपत्य की शेष 14120 वर्ग फुट भूमि निर्माण सहित पंजीकृत असाइनमेंट आॅफ लीज द्वारा नरेश अग्रवाल उनके पुत्र हर्ष अग्रवाल सहित अन्य को रजिस्टर्ड दस्तावेजों के द्वारा स्थानांतरित कर दी गई। जिसके बाद अनदेखी के चलते इस भूमि का भी  निगम में नामातंरण कर दिया गया है। 
चुप्पी पर सवालों के घेरे में निगम अधिकारी 
बीते 28 साल से निगम स्वामित्व की भूमि पर अधिपत्य को लेकर एक ओर न्यायालयों में वाद लंबित रहे, तो उनसे दो-चार होने वाले के बाद भी Þलगातार मोदी हाउस की जमीन को टुकड़ों में बांटकर विक्रय होने पर निगम अधिकारियों की भूमिका सवालों के घेरे में है। साथ ही जानकारों का कहना है कि मामले में मिलीभगत से करोड़ों के लेनदेन होने  पर सभी की चुप्पी है।